*Read in English: When Is a Corneal Transplant Necessary?
कॉर्निया आंख की सबसे बाहरी, पारदर्शी परत होती है, जहां से प्रकाश आंख में प्रवेश करता है। यह प्रकाश को रेटिना पर सही तरीके से फोकस करने में मदद करती है, जिससे छवि बनती है जिसे मस्तिष्क समझता है। यदि कॉर्निया को चोट लग जाए या वह क्षतिग्रस्त हो जाए, और अन्य उपचार प्रभावी न रहें, तो दृष्टि हानि को रोकने के लिए कॉर्नियल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प रह सकता है।
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट में क्षतिग्रस्त कॉर्निया को मृत दाता (डोनर) से प्राप्त स्वस्थ कॉर्निया से बदला जाता है। इस ब्लॉग में हम कॉर्नियल ट्रांसप्लांट के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और यह भी जानेंगे कि किन कॉर्नियल समस्याओं में ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है।
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट क्या है?
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट, जिसे केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है, एक शल्य प्रक्रिया है जिसमें क्षतिग्रस्त या रोगग्रस्त कॉर्निया को दाता से प्राप्त स्वस्थ कॉर्नियल ऊतक से बदला जाता है। यह ऊतक किसी मृत व्यक्ति से लिया जाता है, क्योंकि जीवित व्यक्ति कॉर्निया दान नहीं कर सकते।
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट दृष्टि की स्पष्टता को बेहतर बनाने और आंखों की रोशनी को पुनः स्थापित करने में मदद करता है। यह गंभीर दृष्टि समस्याओं से जूझ रहे मरीजों के लिए एक प्रभावी उपचार विकल्प है।
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट कब आवश्यक होता है?
नीचे कुछ ऐसी स्थितियां दी गई हैं जिनमें कॉर्नियल ट्रांसप्लांट अत्यंत आवश्यक हो सकता है:
केराटोकोनस
केराटोकोनस एक ऐसी स्थिति है जिसमें कॉर्निया पतला और कमजोर हो जाता है तथा शंकु (कोन) के आकार में बाहर की ओर उभर आता है। इससे दृष्टि प्रभावित होती है और रोग के बढ़ने पर चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस से सुधार संभव नहीं होता। केराटोकोनस के उन्नत चरणों में दृष्टि सुधार के लिए कॉर्नियल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प होता है।
कॉर्नियल स्कारिंग (कॉर्निया पर दाग)
आंख में चोट लगने या संक्रमण के कारण कॉर्निया पर दाग पड़ सकते हैं। ये दाग प्रकाश को आंख में सही तरीके से प्रवेश करने से रोकते हैं, जिससे दृष्टि धुंधली हो जाती है। अत्यधिक स्कारिंग के मामलों में क्षतिग्रस्त ऊतक को हटाकर स्वस्थ ऊतक लगाने के लिए कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है।
गंभीर आंखों के संक्रमण
वायरल, बैक्टीरियल या फंगल केराटाइटिस जैसे गंभीर कॉर्नियल संक्रमण कॉर्निया को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकते हैं। जब दवाइयों और अन्य उपचारों से राहत न मिले, तब कॉर्नियल ट्रांसप्लांट आवश्यक हो सकता है।
कॉर्नियल डिजनरेशन
उम्र से जुड़े बदलाव या अपक्षयी (डिजनरेटिव) रोग कॉर्निया की संरचना और कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे मामलों में दृष्टि सुधार और जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने के लिए कॉर्नियल ट्रांसप्लांट किया जाता है।
पहले किए गए कॉर्नियल ट्रांसप्लांट का अस्वीकार होना
यदि पहले लगाया गया कॉर्नियल ऊतक शरीर द्वारा अस्वीकार कर दिया जाए, तो दोबारा कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ सकती है।
गंभीर कॉर्नियल अल्सर
जब गंभीर कॉर्नियल अल्सर एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स, मौखिक दवाओं या कॉन्टैक्ट लेंस से ठीक न हों, तब कॉर्नियल ट्रांसप्लांट आवश्यक हो सकता है।
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट के बाद रिकवरी
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट के बाद ठीक होने में आमतौर पर कुछ हफ्तों से लेकर कई महीनों तक का समय लग सकता है। पूरी तरह से ठीक होने में एक साल तक भी लग सकता है। रिकवरी के दौरान निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- डॉक्टर द्वारा बताई गई आई ड्रॉप्स नियमित रूप से डालें
- आंखों को छूने या रगड़ने से बचें
- भारी वजन उठाने या अत्यधिक शारीरिक गतिविधि से परहेज करें
- आंखों की सुरक्षा के लिए प्रोटेक्टिव चश्मा पहनें
- डॉक्टर के साथ नियमित फॉलो-अप विजिट करें
- संतुलित और पौष्टिक आहार लें
- आंखों को पर्याप्त आराम दें
- यदि दर्द, लालिमा या दृष्टि में कमी महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें
डॉक्टर से कब मिलें?
यदि आपको दृष्टि से जुड़ी कोई समस्या हो या ऊपर बताई गई किसी भी आंख की बीमारी के लक्षण महसूस हों, तो तुरंत किसी विशेषज्ञ से सलाह लें। डॉक्टर आपकी स्थिति का सही निदान करके उचित उपचार बताएंगे। यदि डॉक्टर यह तय करते हैं कि कॉर्नियल ट्रांसप्लांट आवश्यक है, तो आपको वेटिंग लिस्ट में रखा जा सकता है।
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट एक बड़ी और संवेदनशील सर्जरी है, जिसके लिए अनुभवी विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। इसलिए डॉक्टर और अस्पताल का चयन बहुत सोच-समझकर करना चाहिए।
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